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मुंशी प्रेमचन्द हिन्दी कहानी संसार के लिए वरदान बनकर आये, इनकी हिन्दी की पहली कहानी

'कफन', पूस की रात, शतरंज के खिलाड़ी, दूध का दाम, ठाकुर का कुआँ, नशा, बड़े भाई साहब, सवा सेर गेहूँ, अलाग्योझा, नमक का दरोगा, पंचपरमेश्वर, ईदगाह, बूढ़ी काकी, ईदगाह आदि। इनमें

से इस युग की कहानियों की भाषा उतनी प्रौढ़ और परिमार्जित भाषा नहीं है जितनी

विघटन इत्यादि का वर्णन विस्तार से हुआ है। निर्मल वर्मा के पराये शहर में' 'अन्तर' 'परिन्दे', 'लवर्स', 'लन्दन की रात', मोहन राकेश की 'वासना की छाया', 'काला रोजगार', मिस्टर भाटिया 'मलवे का मालिक', राजेन्द्र यादव

किया। इसलिए इनकी कहानियों में एक विशेष प्रकार की 'चिन्तन शीलता तथा तटस्थ बैदिकता के दर्शन होते

प्रेमचन्द ने अपनी कहानियों के पात्र गरीब, बेबस और दबे-कुचले लोगों को बनाया। इन सबके अन्दर गुप्त

साहित्यकार होने के कारण इनकी कहानियों में राष्ट्रीय भावना और सांस्कृतिक चेतना

समय' बग महिला की 'दुलाई वाली' आदि कहानियाँ इसी

क्रियाशील मानव की भाँति प्रतीत हो। वह उसके द्वारा ऐसे कार्य नहीं करा सकता जो

अपने युग की सामाजिक बुरी दशा को अपने उपन्यास तथा कहानियों का विषय बनाया। अपने

इलाचन्द्र जोशी फ्राइड के मनोविश्लेषण सिद्धान्त को साथ लेकर चलने वाले लेखक हैं।

है यद्यपि इसकी भाषा और शैली में आधुनिक कहानी कला का आभास मिल जाता है।"

लड़के पर जवानी आती देख जब्बार के बाप ने पड़ोस के गाँव में एक लड़की तजवीज़ कर ली। लेकिन जब्बार ने हस्बा की लड़की शब्बू को जो पानी भर कर लौटते देखा, तो उसकी सुध-बुध जाती रही। जैसे कथा कहानी में कहा जाता है कि शाहज़ादा नदी में बहता हुआ सोने का एक बाल यशपाल

मूर्ख बगुला और नेवला : पंचतंत्र की कहानी 

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